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गणपति उत्सव से पहले मूर्तिकारों पर पड़ी कोरोना की मार, भारी घाटे की चिंता में हैं मूर्ति बनाने वाले 15-Jul-2020

कोरोना वायरस के बढ़ते प्रकोप के कारण इस साल मुंबई के मूर्तिकार परेशान हैं. गणपति उत्सव के बदले नियमों ने मूर्तिकारों की चिंता बढ़ा दी है.

मुंबई: गणपति उत्सव के पर्व नजदीक है. हर बार उत्सव के समय महाराष्ट्र का मुंबई एक अलग रंग में दिखाई देता है, लेकिन इस बार स्थिति विपरीत है. कोरोना की मार है, इसलिए सब कुछ थमा हुआ है. सरकार की तरफ से गणपति उत्सव के लिए महाराष्ट्र में नियम कायदे भी बनाए गए हैं. इन सबका असर यह पड़ा है कि इस बार गणपति की डिमांड बाजार में बहुत कम है. मुंबई से जहां इस मौके पर देश और विदेश में गणपति की मूर्तियां एक्सपोर्ट की जाती थीं, वहीं इस बार स्थिति बेहद खराब है. मूर्तिकारों की हालत यह है कि लाभ तो छोड़िए वह अपनी लगाई हुई पूंजी और गिरवी गहने वापस के लिए सरकार से प्रार्थना कर रहे हैं.

 

कोरोना की मार से पस्त हैं मूर्तिकार

 

हर साल जब बप्पा गणेश उत्सव में लोगों के घरों में खुशियां और रंग लेकर आते हैं, हर ओर खुशी रहती है. लेकिन इस बार बप्पा कि इस मूर्ति में रंग भरने का काम करने वाले पेन के मूर्तिकार इस बार करोना की मार से पस्त हैं. हर साल मुंबई में देश में हर जगह इनकी मूर्तियां बिकती थीं, लेकिन इस बाल लंबे लॉकडाउन के चलते मूर्तियों की डिमांड बेहद कम है. बेहद कम मूर्तियां हैं और अब जबकि उत्सव में समय बहुत कम बचा है, बाजार में डिमांड कम होने से इन मूर्तिकारों के मन में चिंता है. उनका कहना है कि लाभ तो छोड़िए जो बैंक से लोन लिया है और गहने गिरवी रखकर बाजार से पूंजी उठाई है, वही निकल जाए तो काफी होगा. यह मूर्तिकार सरकार से मदद की उम्मीद लगाए हुए हैं.

 

मुंबई के पेन में मूर्ति बनाने के हजारों केंद्र हैं. जहां लाखों की तादाद में कामगार काम करते हैं. यह पेन और उसके आसपास के इलाकों में रहते हैं. सालभर उनका काम चलता रहता है, लेकिन इनकम का समय सिर्फ 2 महीने का होता है. इस बार कोरोना के बाद के लॉकडाउन में काम थम गया. अब तक जहां दुबई से लेकर देशभर में निर्यात होने के लिए ट्रकों पर ट्रक निकल जाते थे. इस बार आधे से भी कम माल की डिमांड बाजार में है. इन सब के परे निसर्ग तूफान ने भी इस इलाके में काफी बर्बादी की है. ज्यादा से ज्यादा मूर्तियां बनाने के लिए अब इन कामगारों की तरफ से 8 घंटे की बजाय 12 घंटे और ज्यादा समय तक के लिए काम किया जा रहा है और बाजार में जो डिमांड कम है उसके चलते इनके माथे पर शिकन है.



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