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केरल के बाद अब छत्तीसगढ़ देश में दूसरा राज्य होगा जो गर्भावस्था में मानसिक अवसादग्रस्त महिलाओं को देगा स्वास्थ्य सुरक्षा 28-Jun-2019
रायपुर 28 जून 2019 -नेशनल मेन्टल हेल्थ प्रोग्राम के तहत प्रसवकाल के दौरान महिलाओं में होने वाले मानसिक अवसादों की पहचान कर इलाज करने के लिए प्रदेश के जिला, सामुदायिक व प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में कार्यरत डॉक्टरों की दो दिवसीय ट्रेंनिग कि आज शुरुआत हुई । निम्हान्स बेंगलुरु से पहुंची प्रोफ़ेसर डॉ. चंद्रा ने बताया कि दुनियाभर में गर्भावास्था के दौरान तथा प्रसव के बाद अवसाद औऱ तनाव जैसी मानसिक स्वास्थ्य समस्याएँ बहुत आम हैं। विकासशील देशों में हर 5 में से एक महिला तथा विकसित देशों में करीब हर 10 महिला में एक महिला में गर्भावस्था के दौरान तथा प्रसव के बाद मानसिक तौर पर अस्वस्थता पायी जाती है। भारत में, गर्भावस्था के दौरान अवसाद और तनाव की दर 10-12% है जबकि प्रसवोत्तर अवस्था में यह 15% से 20% के बीच है। इस बीमारी को लेकर सबसे बड़ी चुनौती अवसादग्रस्त गर्भवती महिलाओं की सेहत को लेकर जागरूकता की समस्या है। पीड़ित महिलाओं में से 0.8 % ही इलाज के लिए अस्पताल में डॉक्टर के पास पहुंच पाती है। इसका प्रभाव से गर्भावस्था में घबराहट, कोख़ में पल रहे बच्चे के ब्रेन पर असर पड़ता है। बच्चे का वजन कम और समय पूर्व प्रसव जन्म जैसी समस्याओं का कारण बनती है। इलाज के अभाव में महिलाएं आत्म हत्या जैसे कदम उठा लेती हैं। गर्भावस्था के दौरान अवसाद और तनाव जैसी मानसिक स्वास्थ्य समस्यायें समय से पहले और कम वज़न के बच्चों पैदा हो सकते है। प्रसवोत्तर में, अगर माँ उदास रहती है, तो बच्चे की स्तनपान कराने की संभावना कम होती है जिससे शिशु का विकास प्रभावित होता है। गंभीर मामलों में, माँ आत्महत्या का प्रयास भी कर सकती है और कभी-कभी ऐसी स्थितियाँ भी हो जाती हैं जहाँ माँ शिशु को नुकसान पहुंचा सकती है । डॉ गीता देसाई ने बताया कि केंद्र सरकार ने मेन्टल हेल्थ केयर एक्ट में संशोधन करते हुए मानसिक रोगी के लिए अस्पताल में महिला के साथ उनके 3 साल के बच्चे को साथ में भर्ती रखने का नियम है ताकि माँ और बच्चे के बीच मातृत्व का एहसास बना रहे। देश में समग्र मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता कम है। प्रसावकालीन मानसिक विकार के संबंध में, बहुत सारे मिथक और गलत धारणाएं हैं। लोग सोच सकते हैं कि गर्भावस्था में महिलाओं का सुस्त होना सामान्य है और माताओं के मानसिक स्वास्थ के बजाय बच्चे पर अधिक ध्यान केंद्रित होता हैं। डॉ माधुरी ने बताया कि हम उपचार के लिए महिलाओं की पहचान, स्क्रीन और संदर्भ के लिए प्राथमिक स्वास्थ्य में पदस्थ डॉक्टरों और प्रसूति चिकित्सकों को प्रशिक्षित कर रहे हैं। हम उन्हें मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के बारे में पूछने के बुनियादी कौशल प्रदान करेंगे और एक एल्गोरिथ्म विकसित करेंगे जिससे वह स्वयं भी इसका उपचार करने में सक्षम हों , तथा समझ सकें की कब ऐसी महिलाओं को संदर्भित करना चाहिए। एमजीएम हॉस्पिटल मुंबई से आई डॉ सुभांगी डेरे ने बताया कि गर्भावस्था में अवसाद व तनाव के कई कारण हो सकते हैं। इसमें महिला के पारिवरिक स्थिति, गरीबी, आर्थिक संकट, पति पत्नी के बीच लड़ाई, पति का शराब सेवन, घर के एक कमरे तक ही महिला को सीमित कर बाहरी दुनिया से अलग करना, महिला में उदासी, अंदर से खुश नहीं रहना, घबराहट व सपने में डरना, नींद नहीं आना , अनचाही गर्भावस्था और लिंग-हिंसा ऐसे विकार रोगी की पहचान के लिए प्रमुख लक्षण हैं। पहले चरण में डॉक्टरों को प्रशिक्षण देने के बाद फील्ड स्तर पर आरएचओ, मितानिन, आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं, महिला स्वसहायता समूह की महिलाएं और सामाजिक संगठनों को भी पीड़ित महिला की पहचान कर उपचार के लिए रेफर करने की प्रशिक्षण विशेष रूप से दी जाएगी। इससे प्रसव के बाद महिला व बच्चे पर पड़ने वाले मानसिक स्वास्थ्य को लेकर प्रदेश में बेहतर कार्य हो सके। केरल के बाद देश में छत्तीसगढ दूसरा प्रदेश होगा जहां राज्य शासन ने प्रसव के दौरान मानसिक विकारों से गुजरने वाली महिलाओं के स्वास्थ्य को लेकर गंभीरता से लिया है। इस कार्यक्रम के नोडल अधिकारी डॉ महेंद्र सिंह को नियुक्त किया गया है।छत्तीसगढ़ सरकार अब अपने चिकित्सा अधिकारियों, नोडल अधिकारियों (मानसिक स्वास्थ्य), स्त्री रोग विशेषज्ञ और वर्चुअल नॉलेज नेटवर्क (VKN) से प्रशिक्षित डॉक्टरों (NIMHANS) और मनोचिकित्सकों को महिलाओं में प्रसावकालीन मानसिक विकारों की पहचान करने के लिए ट्रेनिंग दे रही है।


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