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ड्रग्स केस : बॉम्बे HC पहुंचे अरमान कोहली, आर्यन खान संग कल जमानत पर सुनवाई 25-Oct-2021
हैदराबाद : अभिनेता अरमान कोहली और आर्यन खान दोनों ही ड्रग्स केस में जेल में हैं. निचली अदालत में दोनों की जमानत याचिका खारिज होने के बाद अब मंगलवार 26 अक्टूबर को बॉम्बे हाईकोर्ट में इनकी जमानत याचिका पर सुनवाई होनी है. अरमान कोहली के घर से ड्रग्स संबंधित आपत्तिजनक चीजें बरामद होने के बाद से वह जेल में हैं. 21 अक्टूबर को मुंबई की सेशन कोर्ट ने अरमान कोहली की जमानत याचिका खारिज कर दी थी. अब अरमान कोहली ने जमानत के लिए बॉम्बे हाईकोर्ट का रुख किया है. आर्यन खान और अरमान कोहली की एक ही दिन सुनवाई अरमान कोहली के वकील ने बॉम्बे हाईकोर्ट में जमानत याचिका दाखिल की और इस पर जल्द ही सुनवाई के लिए अनुमति मांगी. अब संभावना है कि अरमान कोहली की जमानत याचिका पर बॉम्बे हाईकोर्ट में मंगलवार 26 अक्टूबर को सुनवाई हो सकती है. बता दें, 26 अक्टूबर को बॉम्बे हाईकोर्ट में ड्रग्स केस में बीते 22 दिन से गिरफ्तार शाहरुख खान के बेटे आर्यन खान की भी जमानत याचिका पर सुनवाई होनी है. किन आधारों पर अरमान कोहली ने मांगी जमानत अरमान कोहली के वकील की ओर से तैयार की गई फाइल में निम्नलिखित आधारों पर जमानत देने का अनुरोध किया गया है. अरमान कोहली निर्दोष हैं और उन्हें झूठे केस में फंसाया गया है. अरमान के खिलाफ ना तो कोई प्रथम दृष्टयता मामला है और ना ही कोई ठोस सबूत. एक्टर के खिलाफ एनडीपीएस एक्ट की धारा 67 के तहत रिकॉर्ड किया गया बयान ही एकमात्र सबूत है. बयान और पंचनामा के अलावा, कोहली के खिलाफ एनडीपीएस एक्ट की धारा 27A और 29 को लागू करने का प्रथम दृष्टयता आरोप साबित करने के लिए कोई सामग्री नहीं है. केवल बैंक स्टेटमेंट और व्हाट्सएप चैट एनडीपीएस एक्ट के कड़े प्रावधानों को लागू करने के लिए पर्याप्त नहीं है. यहां तक ​​कि चैट्स से भी पता चला है कि कोहली की ओर से एनडीपीएस एक्ट के तहत किसी भी प्रकार के वित्तपोषण या तस्करी से संबंधित कोई सबूत नहीं मिला है. लिहाजा कथित तौर पर अरमान के पास से बरामद ड्रग्स की मात्रा 1.2 ग्राम की है, जो बहुत कम है और यह एनडीपीएस एक्ट के तहत गैर-जमानती श्रेणी में नहीं आती है, इसलिए एनडीपीएस एक्ट 37 की धारा की कठोरता यहां लागू नहीं होती है. व्यक्तिगत स्वतंत्रता अमूल्य है और इसे बनाए रखना ही सभ्य समाज का आधार है. अभियुक्त कानून की नजर में हैं और उसके भागने का कोई उद्देश्य नहीं है. ऐसे में अभियुक्त को लंबित मामले में कैद रखने का कोई औचित्य नहीं बनता है.


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