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नक्सली हमला : बेकसूर 121 आदिवासियों के 5साल जेल में : जिम्मेदारों पर जुर्म दर्ज क्यों नहीं ? 26-Jul-2022

नक्सलियों ने 24 अप्रैल, 2017 को सुकमा में बुरकापाल के पास सीआरपीएफ की एक टीम पर घात लगाकर हमला किया था, जिसमें अर्धसैनिक बल की 74वीं बटालियन के 25 जवानों की मौत हो गई थी|

 जिन आदिवासियों के 5 साल जेल में कटे हैं उसका हर्जाना कौन देगा ? इस दौरान इनके परिवारों को हुई पीड़ा, परेशानियों और तकलीफों के लिए जिम्मेदार कौन होगा ?

*सरकार को चाहिए कि तत्कालीन संबंधित सभी अधिकारियों को इस कृत्य के लिए सजा दे, उन पर जुर्म दर्ज कर कार्यवाही करें*

2017 में बस्तर क्षेत्र के सुकमा जिले के बुर्कापाल गांव के पास नक्सली हमले में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के 25 जवान शहीद हो गए थे। इस मामले में पुलिस प्रशासन ने कार्यवाही करते हुए बुर्कापाल एवं आसपास के गांवों के 121 ग्रामीणों को इस नक्सली हमले के लिए, नक्सलियों का साथ देने के आरोप में गिरफ्तार कर जेलों में डाल दिया था | *

अदालत ने मामले के 121 आरोपियों को रिहा किया*

राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) मामलों के विशेष न्यायाधीश दीपक कुमार देशलहरे ने जुलाई 2022 में यह देखते हुए 121 आरोपियों को बरी कर दिया था कि अभियोजन अपराध में उनकी संलिप्तता और नक्सलियों के साथ संबंध साबित करने में विफल रहा |

*पुलिस महानिदेशक (बस्तर रेंज) सुंदरराज.पी ने कहा कि अदालत के आदेश के बाद 113 आरोपियों को शनिवार को रिहा कर दिया गया जिनमें से 110 जगदलपुर केंद्रीय जेल और तीन दंतेवाड़ा जिला जेल में बंद हैं। उन्होंने कहा कि शेष आठ, अन्य मामलों में भी आरोपी हैं और इसलिए उन्हें रिहा नहीं किया गया है। अधिकारी ने कहा कि फैसले के दस्तावेज और कानूनी संभावनाओं की जांच के बाद मामले में आगे की कार्रवाई के बारे में फैसला किया जाएगा।*

बुर्कापाल मामला cg राज्य के बस्तर क्षेत्र में आदिवासियों के साथ हुए गंभीर अन्याय का एक उदाहरण है - बेला भाटिया 

नक्सली हमले में 25 जवानों की हुई थी मौत*

नक्सलियों ने 24 अप्रैल, 2017 को सुकमा में बुरकापाल के पास सीआरपीएफ की एक टीम पर घात लगाकर हमला किया था, जिसमें अर्धसैनिक बल की 74वीं बटालियन के 25 जवानों की मौत हो गई थी। इस घटना को अंजाम देने के लिए इनमें से अधिकांश को 2017 में गिरफ्तार किया गया था जबकि कुछ को 2018 और 2019 में गिरफ्तार किया गया था। उन पर भारतीय दंड संहिता, शस्त्र अधिनियम, विस्फोटक पदार्थ अधिनियम, छत्तीसगढ़ विशेष सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम और गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम की विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया था।

*शादी के बाद से पत्नी को नहीं देखा* 113 आदिवासियों के जेल से बाहर आने के बाद उनमें से कुछ ने कहा कि उनके परिवार बर्बाद हो गए क्योंकि वे अकेले कमाने वाले थे। जगरगुंडा गांव के रहने वाले हेमला आयुतु ने कहा, हमने जो अपराध किया ही नहीं , उसके लिए हमने पांच साल जेल में बिताए। हेमला आयुतु ने कहा कि घटना कुछ दिन पहले मेरी शादी हुई थी जिसके बाद मुझे गिरफ्तार कर लिया गया था। मैंने तब से अपनी पत्नी को नहीं देखा है। मेरे चाचा डोडी मंगलू (42 वर्षीय) को भी इसी मामले में गिरफ्तार किया गया था, वो जेल में ही मारे गए। उन्होंने दावा किया कि मांगने के बाद भी जेल प्राधिकरण ने उन्हें उनसे (डोडी मंगलू) संबंधित कोई दस्तावेज नहीं दिया। मंगलू इस मामले में 121 आरोपियों के अलावा था।

 

*आदिवासियों को बेचने पड़े अपने खेत और बेल* मामले में बरी किए गए एक अन्य आदिवासी ने कहा कि उसके परिवार ने अदालत की सुनवाई के खर्च के लिए बुरकापाल गांव में अपने खेत और बैल बेच दिए। व्यक्ति ने कहा कि वह शादीशुदा है और उसके कोई बच्चे नहीं हैं।

 

बचाव पक्ष के वकीलों में से एक मानवाधिकार कार्यकर्ता बेला भाटिया ने दावा किया कि बुरकापाल मामला बस्तर क्षेत्र में आदिवासियों के साथ हुए गंभीर अन्याय का एक उदाहरण है। उन्होंने कहा कि इन आदिवासियों को आखिरकार न्याय मिल गया है लेकिन उन्हें एक अपराध के लिए इतने साल जेल में क्यों बिताने पड़े?* बेला भाटिया ने पूछा, उन्हें मुआवजा कौन देगा? उनके परिवार बर्बाद हो गए हैं और अधिकांश गिरफ्तार आदिवासियों के परिजन जगदलपुर और दंतेवाड़ा की जेलों में भी उनसे मिलने नहीं गए क्योंकि उनके पास पैसे नहीं थे।

 

*नक्सली हमले में बरी हुए 121 आदिवासियों में से आठ अब भी जेल में है, कार्यकर्ता बोले - यह घोर अन्याय*

2017 में बस्तर क्षेत्र के सुकमा जिले के बुर्कापाल गांव के पास नक्सली हमले में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के 25 जवान शहीद हो गए थे। शुक्रवार को अदालत के आदेश के बाद 121 आरोपियों को मामले से बरी कर दिया गया। छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले की एक अदालत ने साल 2017 के बुरकापाल नक्सली हमले के मामले में हाल ही में 121 आदिवासियों को बरी किया। इनमें से आठ अभी भी जेल में हैं, क्योंकि वे अन्य मामलों में भी आरोपी हैं।

 

2017 बुर्कापाल नक्सली हमले में शहीद हुए 25 सीआरपीएफ जवानों की मौत के लिए जिम्मेदारी तय करते हुए पुलिस एवं सीआरपीएफ ने जिन 121 बस्तर के आदिवासी ग्रामीणों को नक्सलियों की मदद करने के आरोप में गिरफ्तार किया था उन्हें एनआईए की अदालत ने बरी कर दिया |

 

बस्तर पुलिस एवं उनके अधिकारियों द्वारा आदिवासी ग्रामीणों को आरोपी बनाकर जेल में तो डाल दिया गया परंतु 5 साल तक भी यह प्रमाणित नहीं कर पाए कि उस नक्सली घटना में यह सभी शामिल थे और अंततः आरोप प्रमाणित ना होने के आधार पर दंतेवाड़ा कि एनआईए अदालत ने उन्हें बाइज्जत बरी कर दिया |

अपने परिजनों को जेल से छुड़ाने के लिए जेल में बंद इन आदिवासी ग्रामीणों के परिजनों ने जमीन - जायदाद, बैल बेचकर न्यायालय की प्रक्रिया के लिए खर्च किए , आवक विहीन ग्रामीण इन खर्चों के कारण सड़क पर आ गए, कईयों के रिश्तेदार परिजन इस दौरान मृत्यु को प्राप्त हो गए |

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अब सवाल यह उठता है कि जिन आदिवासियों के 5 साल जेल में कटे हैं उसका हर्जाना कौन देगा ? इस दौरान इनके परिवारों को हुई पीड़ा, परेशानियों और तकलीफों के लिए जिम्मेदार कौन होगा ?

*सरकार को चाहिए कि तत्कालीन संबंधित सभी अधिकारियों को इस कृत्य के लिए सजा दे, उन पर जुर्म दर्ज कर कार्यवाही करें*

इस मामले की सीबीआई जांच होना चाहिए क्योंकि निरपराध भोले भाले, मासूम ग्रामीण आदिवासियों को इस झूठे मामले के कारण 5 साल जेल की सजा भुगतनी पड़ी, साथ ही उनके परिजन दाने-दाने को मोहताज हो गए,अपनी जमीन जायदाद और बैल बेचने को मजबूर हुए और इस बिना वजह के झूठे अपराध में गिरफ्तार किए जाने से उनके भरण-पोषण, पालन पोषण करने वालों को पुलिस ने जबरन जेल भेज दिया, जिससे इन पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा|

यहां यह सवाल उठता है कि जब पुलिस अधिकारियों के पास इस बात का कोई प्रमाण नहीं था कि इन ग्रामीण आदिवासियों ने नक्सलियों का साथ दिया है या उस घटना में शामिल थे तो फिर इन्होंने झूठे प्रकरण किसके कहने पर बनाएं ? इसके पीछे की भी जांच होना अति आवश्यक है |

केन्द्र सरकार को भी नियमों में बदलाव कर यह तय करना चाहिए कि दुर्भावनावश या बिना प्रमाण किसी को भी जेलों में डालने पर संबंधित अधिकारियों पर ऐसे कृत्य के लिए कड़ी सजा मिले | साथ ही बिना वजह, अपराध किए बिना या अपराध में शामिल ना होने पर भी जेल में बंद दिनों की तकलीफों और मानसिक शारीरिक प्रताड़ना सहने एवं इस दौरान हुए आर्थिक नुकसान की भरपाई संबंधित अधिकारियों से वसूलने की व्यवस्था कानून में की जाय|

होना यह चाहिए

किसी भी अपराध की जांच के दौरान शक होने पर संबंधित पुरुष, महिला या नाबालिग बच्चे बच्चियों से पुलिस द्वारा पूछताछ की जाय और अपराध में लिप्त होने के पक्के प्रमाण मिलने पर ही जेल भेजा जाना चाहिए अन्यथा पूछताछ के बाद छोड़ देना चाहिए!



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