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सिखों के नौंवें गुरु श्री गुरु तेग बहादुर जी का प्रकाश पर्व 11 अप्रैल को 10-Apr-2023

श्री गुरु तेग बहादुर जी को हिंद की चादर भी कहा जाता है

हिंदू धर्म की रक्षा के लिए प्राणों को कर दिया न्यौछावर 

 

इस वर्ष 11 अप्रैल 2023, मंगलवार को सिख समाज अपने नौवें गुरु श्री गुरु तेग बहादुर जी का प्रकाश पर्व धूमधाम से मनाने जा रहा है, सभी गुरुद्वारों में श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी के प्रकाश के साथ ही कथा कीर्तन का दौर शुरू हो जाएगा, सिख समाज के स्त्री, पुरुष, बच्चे बुजुर्ग गुरुद्वारों में मत्था टेक कर कथा कीर्तन का श्रवण कर मिलकर अरदास करेंगे | श्री गुरु तेग बहादुर जी को हिंद की चादर भी कहा जाता है | तत्कालीन शासक औरंगजेब द्वारा कश्मीरी पंडितों को धर्म परिवर्तन के लिए प्रताड़ित किया जा रहा था औरंगजेब की प्रताड़ना से तंग होकर कश्मीरी पंडितों ने श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी को अपनी पीड़ा बताते हुए औरंगजेब की क्रूरता से बचाने का आग्रह किया था | जिस समय कश्मीरी पंडित श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी को अपनी व्यथा व्यक्त कर रहे थे उस समय श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी के बेटे श्री गोविंद राय जो मात्र 8 वर्ष के थे उन्होंने अपने पिता को औरंगजेब की क्रूरता से इन्हें बचाने सामने आने को कहा | जिस पर श्री गुरु तेग बहादुर जी ने कश्मीरी पंडितों से कह दिया कि जाकर औरंगजेब को कह दो कि अगर गुरु तेग बहादुर जी धर्म परिवर्तन कर लेंगे तो हम सब भी आपके कहे अनुसार धर्म परिवर्तन करने को तैयार हैं | औरंगजेब की तमाम कोशिशों के बावजूद भी जब श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी ने धर्म परिवर्तन नहीं किया तो औरंगजेब ने दिल्ली के चांदनी चौक में उनका सिर धड़ से अलग कर कत्ल कर दिया यह वही जगह है जहां आज गुरुद्वारा सीस गंज साहिब स्थापित है | श्री गुरु तेग बहादुर जी ने हिंदू धर्म की रक्षा के लिए कश्मीरी पंडितों के लिए अपने प्राणों को न्यौछावर कर दिया परंतु धर्म परिवर्तन नहीं किया यही कारण है कि आज उन्हें हिंद की चादर गुरु तेग बहादुर के नाम से जाना जाता है | श्री गुरु तेग बहादुर जी को क्रांतिकारी युग पुरुष कहा जाता है। विश्व इतिहास में धर्म, मानवीय मूल्यों, आदर्शों तथा सिद्धांतों की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वालों में गुरु तेग बहादुर साहब का स्थान अद्वितीय है। उन्होंने अपनी जान दे दी लेकिन वे झुके नहीं।  वैशाख कृष्ण पंचमी को उनका प्रकाश पर्व मनाया जाता है, वे सिखों के नौंवें गुरु थे। उनका बचपन का नाम त्यागमल था और पिता का नाम श्रीगुरु हरगोबिंद साहेब था। श्री गुरु हरगोबिंद साहिब सिखों के नौवें गुरु हैं | मीरी-पीरी के मालिक पिता गुरु हरिगोबिंद साहिब की छत्र छाया में उनकी शिक्षा-दीक्षा हुई। इसी समय तेग बहादुर जी ने गुरुबाणी, धर्मग्रंथ तथा शस्त्रों और घुड़सवारी आदि की शिक्षा प्राप्त की। सिखों के 8वें गुरु हरिकृष्ण जी के ज्योति ज्योत सामने के बाद श्री गुरु तेग बहादुर जी को सिक्खों के नौवें गुरु बने।  

इनकी वीरता से प्रभावित होकर उनके पिता ने उनका नाम तेग बहादुर यानी तलवार के धनी रख दिया। गुरु तेग बहादुर सिंह जहां भी गए उन्होंने देश को दुष्टों के चंगुल से छुड़ाने के लिए जनमानस में विरोध की भावना भर, कुर्बानियों के लिए तैयार किया और मुगलों के नापाक इरादों को नाकामयाब करते हुए कुर्बान हो गए। सिक्खों के नौंवें गुरु तेग बहादुर जी ने अपने युग के शासन वर्ग की नृशंस एवं मानवता विरोधी नीतियों को कुचलने के लिए अपना बलिदान दे दिया। 
 
गुरु तेग बहादुर जी द्वारा रचित बाणी के 15 रागों में 116 शबद (श्लोकों सहित) श्रीगुरु ग्रंथ साहिब में संकलित हैं। शस्त्र, शास्त्र, संघर्ष, वैराग्य, लौकिक, रणनीति,  राजनीति और त्याग आदि सारे गुण गुरु तेग बहादुर सिंह में मौजूद थे, ऐसा संयोग मध्ययुगीन साहित्य व इतिहास में बिरला ही देखने को मिलता है। 
 
प्रेम, सहानुभूति, त्याग, ईश्वरीय निष्ठा, समता, करुणा और बलिदान जैसे मानवीय गुण गुरु तेग बहादुर सिंह जी में विद्यमान थे।


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