National News
संगीत भारत की सांस्कृतिक विरासत के मूल में है, यह लोगों को एकजुट करता है और उन्हें आपस में जोड़ता है - एम. वेंकैया नायडू 12-Jan-2020

उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने आज कहा कि संगीत भारत की सांस्कृतिक विरासत के मूल में है और यह न केवल तसल्ली देता है बल्कि लोगों को एकजुट कर उन्हें आपस में जोड़ता भी है।

आज तंजावुर जिले के थिरुवैयारु में श्री त्यागराज के 173वें आराधना महोत्सव का उद्घाटन करते हुए उन्होंने कहा कि कला लोगों को जोड़ता है। उन्होंने यह भी कहा कि संगीतचित्रकला और कला हमारी सभ्यता के महत्वपूर्ण पहलू रहे हैं।

हमारी अद्वितीय सांस्कृतिक विरासत को संरक्षण और सुरक्षा का आह्वान करते हुए उन्होंने कहा कि हमारी संस्कृति और मूल्य हमारी पहचान हैं। यह हमें औरों से अलग पहचान दिलाता है। इसने हमें पूरी दुनिया में सम्मान दिलाया है।

संत संगीतकार त्यागराज को श्रद्धांजलि देते हुए उपराष्ट्रपति ने उन्हें भारत के महानतम संगीतकारों में से एक बताया। उन्होंने कहा कि सदगुरु त्यागराज 18वीं शताब्दी में संगीतकारों की सबसे प्रतिष्ठित त्रिमूर्ति में से एक थे, बाकि दो श्यामा शास्त्री और श्री मुथुस्वामी दीक्षितार थे।

उपराष्ट्रपति ने कहा कि हमारी सांस्कृतिक विरासत के संवर्धन में संत त्यागराज के योगदान को निर्धारित या अनुमानित नहीं किया जा सकता है। उन्होंने अपने गीतों में न केवल नैतिक और दार्शनिक सच्चाइयों को दर्शाया बल्कि उन्हें अपने दैनिक जीवन में भी अमल में लाया। उनकी शैली सरलसुंदर और आकर्षक थी जो विद्वानों से लेकर साधारण लोगों तक को अपील करती थी।

संत त्यागराज को विभिन्न रागों में अनगिनत अमर गीतों के संगीतकार के रूप में प्रशंसा करते हुए श्री नायडू ने कहा कि श्री त्यागराज की रचनाएं संगीत की दुनिया के लिए खजाना है और हमारे दिलों में हमेशा के लिए रहेंगी। उन्होंने कहा कि संत त्यागराज का दिल भगवान राम की भक्ति में रमा था और उनके गीत भावनाओं से भरे हुए हैं जो आपके दिल को छू जाते हैं।

हर साल त्यागराज आराधना महोत्सव के आयोजन की परंपरा की प्रशंसा करते हुए उन्होंने कहा कि संत त्यागराज को श्रद्धांजलि देने के लिए इस वार्षिक कार्यक्रमों में लोगों की रुचि और भागीदारी बढ़ रही है।

उपराष्ट्रपति ने स्कूलों और शैक्षणिक संस्थानों से बच्चों को हमारी समृद्ध संस्कृति के विविध तत्वों के प्रति संवेदनशील बनाने का आह्वान किया। उन्होंने ने कहा कि बच्चों को जातक कथाओं को पढ़ने से लेकर प्राचीन भारत के स्थापत्य चमत्कारों का अनुभव करते हुए हमारी संस्कृति के विभिन्न आकर्षक पहलुओं का पता लगाने और उनसे जीवन के सबक सीखने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।

हमारी संस्कृति के खजाने को भावी पीढ़ियों तक पहुंचाने की आवश्यकता पर जोर देते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि उन्हें संत त्यागराज जैसे महान पुरूषों के बारे में जानना चाहिए और उनकी शानदार सांस्कृतिक विरासत पर गर्व करना चाहिए। उन्होंने कहा कि उन्हें अपनी जड़ों को नहीं भूलना चाहिए और इसकी चमक से प्रेरणा लेनी चाहिए।

उपराष्ट्रपति ने हर साल होने वाले वार्षिक आराधना समारोह के आयोजन की परंपरा को बनाए रखने के लिए त्यागब्रह्म महोत्सव सभा के श्री मूपनार परिवार की सराहना की।

इस अवसर पर तमिलनाडू के पर्यटन मंत्री थिरु वेल्लामंडी एन. नटराजनत्यागब्रह्म महोत्सव सभा के अध्यक्ष जी.के. वासन और सभा के सचिव ए.के. पलानीवेल सहित कई बड़ी हस्तियां मौजूद थीं।



RELATED NEWS
Leave a Comment.