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एक ओंकार अर्थात् परमात्मा एक है - इंसानियत से बढ़कर कोई धर्म नहीं है - श्री गुरु नानक देव जी की जयंती के 555 वर्ष पूरे होने पर पर विषेश लेख
देश के वर्तमान हालातो पर श्री गुरु नानक देव जी के उपदेश और संदेश पर हर किसी को गौर करना चाहिए
सतगुरु नानक परगटिया, मिट्टी धुन्ध जग चानन होआ |ज्यों कर सूरज निकलया, तारे छपे अंधेर पलोआ ||एक ओंकार अर्थात् परमात्मा एक है - इंसानियत से बढ़कर कोई धर्म नहीं है
श्री गुरु नानक देव जी ने जात-पात उच्च नीच धर्म और वर्ग के भेदभाव को मिटाने की बात की थी
कीरत करो, वण्ड छको, नाम जपो अर्थात काम करो, मिल बाटकर खाओ और भगवान का नाम लो का मंत्र दिया
श्री गुरु नानक देव जी की जीवनी, उद्देश्य, मानवता के प्रति योगदान और प्रकाश पर्व की महिमा
श्री गुरु नानक देव जी ने संपूर्ण मानवता को प्रेम, सेवा, समानता और एकता का संदेश दिया
उनके विचार का मूल तत्व "एक ओंकार" जिसका अर्थ है "परमात्मा एक है।" उन्होंने जात-पात, ऊँच-नीच, धर्म, और वर्ग के भेदभाव को मिटाने पर ज़ोर दिया।
श्री गुरु नानक देव जी (1469–1539) सिख धर्म के संस्थापक और पहले गुरु थे, जिन्होंने अपनी शिक्षा और विचारों के माध्यम से संपूर्ण मानवता को प्रेम, सेवा, समानता और एकता का संदेश दिया। उनकी शिक्षाएँ और जीवन दर्शन न केवल सिख धर्म के अनुयायियों बल्कि दुनिया के सभी लोगों के लिए एक प्रेरणा बने हुए हैं। गुरु नानक जी ने अपने समय की सामाजिक और धार्मिक विषमताओं को मिटाने के लिए कई महत्वपूर्ण कार्य किए, जिनका प्रभाव आज भी विश्व के कोने-कोने में महसूस किया जाता है।
प्रारंभिक जीवन
श्री गुरु नानक देव जी का जन्म 15 अप्रैल, 1469 को रावी नदी के तट पर स्थित तलवंडी नामक स्थान पर हुआ था, जो अब पाकिस्तान के ननकाना साहिब में है। उनके पिता का नाम मेहता कालू जी और माता का नाम तृप्ता जी था। गुरु नानक जी का बचपन से ही आध्यात्मिकता की ओर झुकाव था और वे साधारण जीवन में भी असाधारण ज्ञान और विवेक के धनी थे। बचपन में ही उन्होंने समाज में फैली असमानता, धार्मिक कट्टरता, अंधविश्वासों के प्रति अपनी असहमति व्यक्त करना शुरू कर दिया था।
श्री गुरु नानक जी का प्रमुख उद्देश्य
श्री गुरु नानक देव जी का प्रमुख उद्देश्य मनुष्य को मनुष्यता के मार्ग पर चलाना था। उनके अनुसार ईश्वर एक है और सभी प्राणी उसके ही अंश हैं। उनके विचार का मूल तत्व "एक ओंकार" में समाहित है, जिसका अर्थ है "परमात्मा एक है।" उन्होंने जात-पात, ऊँच-नीच, धर्म, और वर्ग के भेदभाव को मिटाने पर ज़ोर दिया। गुरु नानक जी का मानना था कि ईश्वर के सच्चे उपासक वही हैं जो परोपकार, प्रेम, करुणा और सेवा में विश्वास रखते हैं।
मानवता के प्रति योगदान
श्री गुरु नानक देव जी ने समाज में सुधार लाने के लिए कई यात्राएँ कीं, जिन्हें "उदासियाँ" कहा जाता है। इन उदासियों के माध्यम से उन्होंने भारत, अफगानिस्तान, अरब, तिब्बत और श्रीलंका जैसे विभिन्न देशों में जाकर अपने विचारों का प्रचार किया। उन्होंने लोगों को सत्य, धर्म, और करुणा के मार्ग पर चलने की शिक्षा दी। उनके कार्यों ने समाज में गहरे बदलाव लाए और लोगों में आत्म-सुधार और एकता की भावना जागृत की।
1. लंगर प्रथा : श्रीगुरु नानक जी ने "लंगर" की परंपरा शुरू की, जिसका उद्देश्य था सभी को समानता और एकता के भाव में जोड़ना। इसमें बिना किसी भेदभाव के सभी लोगों को भोजन कराया जाता था, जो आज भी सभी गुरुद्वारों में चल रहा है।
श्री गुरु नानक देव जी ने संपूर्ण मानवता को प्रेम, सेवा, समानता और एकता का संदेश दिया
उनके विचार का मूल तत्व "एक ओंकार" जिसका अर्थ है "परमात्मा एक है।" उन्होंने जात-पात, ऊँच-नीच, धर्म, और वर्ग के भेदभाव को मिटाने पर ज़ोर दिया।
श्री गुरु नानक देव जी (1469–1539) सिख धर्म के संस्थापक और पहले गुरु थे, जिन्होंने अपनी शिक्षा और विचारों के माध्यम से संपूर्ण मानवता को प्रेम, सेवा, समानता और एकता का संदेश दिया। उनकी शिक्षाएँ और जीवन दर्शन न केवल सिख धर्म के अनुयायियों बल्कि दुनिया के सभी लोगों के लिए एक प्रेरणा बने हुए हैं। गुरु नानक जी ने अपने समय की सामाजिक और धार्मिक विषमताओं को मिटाने के लिए कई महत्वपूर्ण कार्य किए, जिनका प्रभाव आज भी विश्व के कोने-कोने में महसूस किया जाता है।
प्रारंभिक जीवन
श्री गुरु नानक देव जी का जन्म 15 अप्रैल, 1469 को रावी नदी के तट पर स्थित तलवंडी नामक स्थान पर हुआ था, जो अब पाकिस्तान के ननकाना साहिब में है। उनके पिता का नाम मेहता कालू जी और माता का नाम तृप्ता जी था। गुरु नानक जी का बचपन से ही आध्यात्मिकता की ओर झुकाव था और वे साधारण जीवन में भी असाधारण ज्ञान और विवेक के धनी थे। बचपन में ही उन्होंने समाज में फैली असमानता, धार्मिक कट्टरता, अंधविश्वासों के प्रति अपनी असहमति व्यक्त करना शुरू कर दिया था।
श्री गुरु नानक जी का प्रमुख उद्देश्य
श्री गुरु नानक देव जी का प्रमुख उद्देश्य मनुष्य को मनुष्यता के मार्ग पर चलाना था। उनके अनुसार ईश्वर एक है और सभी प्राणी उसके ही अंश हैं। उनके विचार का मूल तत्व "एक ओंकार" में समाहित है, जिसका अर्थ है "परमात्मा एक है।" उन्होंने जात-पात, ऊँच-नीच, धर्म, और वर्ग के भेदभाव को मिटाने पर ज़ोर दिया। गुरु नानक जी का मानना था कि ईश्वर के सच्चे उपासक वही हैं जो परोपकार, प्रेम, करुणा और सेवा में विश्वास रखते हैं।
मानवता के प्रति योगदान
श्री गुरु नानक देव जी ने समाज में सुधार लाने के लिए कई यात्राएँ कीं, जिन्हें "उदासियाँ" कहा जाता है। इन उदासियों के माध्यम से उन्होंने भारत, अफगानिस्तान, अरब, तिब्बत और श्रीलंका जैसे विभिन्न देशों में जाकर अपने विचारों का प्रचार किया। उन्होंने लोगों को सत्य, धर्म, और करुणा के मार्ग पर चलने की शिक्षा दी। उनके कार्यों ने समाज में गहरे बदलाव लाए और लोगों में आत्म-सुधार और एकता की भावना जागृत की।
1. लंगर प्रथा : श्रीगुरु नानक जी ने "लंगर" की परंपरा शुरू की, जिसका उद्देश्य था सभी को समानता और एकता के भाव में जोड़ना। इसमें बिना किसी भेदभाव के सभी लोगों को भोजन कराया जाता था, जो आज भी सभी गुरुद्वारों में चल रहा है।
2. समानता और भेदभाव के विरोधी: गुरु नानक देव जी ने अपनी शिक्षाओं से महिलाओं के प्रति सम्मान का प्रचार किया और जात-पात के भेदभाव का कड़ा विरोध किया। वे कहते थे कि ईश्वर के सामने सभी एक समान हैं, चाहे वे किसी भी जाति या धर्म के हों।
3. सत्य का मार्ग: गुरु नानक जी ने ईश्वर के प्रति प्रेम और सत्य के मार्ग पर चलने का संदेश दिया। वे बाहरी आडंबरों के बजाय अंतःकरण की शुद्धता पर विश्वास करते थे। उनके उपदेशों में हमेशा सत्य को ही सर्वोपरि माना गया।
देश-दुनिया में योगदान और उनके अनुयायियों की भावनाएँ
श्री गुरु नानक देव जी की शिक्षाएँ और उनके सिद्धांत सिख धर्म के मूल स्तंभ बन गए। उन्होंने "नाम जपो, किरत करो, वंड छको" का मंत्र दिया, जो आज भी सिख धर्म के अनुयायी मानते हैं। उनके विचारों ने न केवल भारत में बल्कि पूरे विश्व में धर्म और मानवता के प्रति एक नई दिशा प्रदान की। गुरु नानक जी के अनुयायियों के लिए उनका जीवन एक प्रेरणा है, और वे उनकी शिक्षाओं का पालन करके सेवा और सद्भाव के मार्ग पर चलने का प्रयास करते हैं।
प्रकाश पर्व
श्री गुरु नानक देव जी के जन्म दिवस को "गुरु नानक जयंती" के रूप में मनाया जाता है, जिसे "प्रकाश पर्व" भी कहा जाता है। यह सिख धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक है, जिसे पूरे विश्व में श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है। इस दिन गुरुद्वारों में विशेष रूप से "अखंड पाठ" किया जाता है और गुरु का "लंगर" आयोजित होता है। इसके अलावा, प्रभात फेरियाँ निकाली जाती हैं और "शबद कीर्तन" किया जाता है, जिसमें श्री गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं का गायन होता है।
प्रकाश पर्व के दिन, सिख समुदाय के लोग विशेष सजावट करते हैं और दीयों से गुरुद्वारों और अपने घरों को सजाते हैं। यह त्योहार न केवल धार्मिक आयोजन है बल्कि एक सांस्कृतिक उत्सव भी है, जो सभी लोगों को एकता, प्रेम और मानवता के मूल्यों का स्मरण कराता है।
निष्कर्ष
श्री गुरु नानक देव जी का जीवन और उनके उपदेश हमें सिखाते हैं कि इंसानियत से बढ़कर कोई धर्म नहीं है। उनकी शिक्षाएँ हमें अपने भीतर प्रेम, शांति, और सेवा के भाव को विकसित करने के लिए प्रेरित करती हैं। श्री गुरु नानक देव जी के योगदान और उनके विचारों की प्रासंगिकता आज भी उतनी ही है जितनी उनके समय में थी। उन्होंने अपने जीवन से यह सिद्ध किया कि एक सच्चा गुरु केवल शिक्षा ही नहीं देता, बल्कि अपनी शिक्षाओं को अपने आचरण में जीता भी है। उनके द्वारा शुरू की गई लंगर परंपरा, जात-पात और ऊँच-नीच का भेदभाव मिटाने का प्रयास, और विश्व भर में उनके अनुयायियों की निस्वार्थ सेवा का भाव यह दर्शाते हैं कि श्री गुरु नानक देव जी का संदेश आज भी मानवता को एक नई दिशा प्रदान कर रहा है।
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