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Mahabharat में राम भक्त हनुमान ने तोड़ा था धनुर्धर अर्जुन का घमंड, लगाई थी ये शर्त 29-Oct-2020

कहते हैं कि एक बार हनुमान ने किसी बात पर अर्जुन से शर्त लगाई थी और वो शर्त जीतकर अर्जुन का घमंड चकनाचूर कर दिया था. इसी प्रसंग के बारे में हम आपको बताने जा रहे हैं.

महाभारत का युद्ध अब तक के सबसे बड़े युद्धों में से एक माना जाता है जिसमें पांडवों की विजय हुई थी. कहा जाता है कि इस पूरे युद्ध में हनुमान जी अर्जुन के रथ की ध्वजा पर विराजमान रहे थे. दरअसल, कलयुग में हनुमान ही एक ऐसे देव हैं जिन्हें अमरत्व प्राप्त हैं. कहते हैं कि जब प्रभु श्रीराम ने जब जल समाधि ली थी, तो अपने परम भक्त हनुमान को यहीं पृथ्वी पर रुकने का आदेश उन्होंने दिया, इसीलिए माना जाता है कि वो आज भी पृथ्वी पर साक्षात रूप में रहते हैं. इससे जुड़ा एक प्रसंग आनंद रामायण में मिलता है, जिसमें हनुमान जी अर्जुन के घमंड को तोड़ते हैं. वहीं हनुमान व अर्जुन का एक प्रसंग भी काफी विख्यात हैं. 

 

कहते हैं कि एक बार हनुमान ने किसी बात पर अर्जुन से शर्त लगाई थी और वो शर्त जीतकर अर्जुन का घमंड चकनाचूर कर दिया था. इसी प्रसंग के बारे में हम आपको बताने जा रहे हैं. 

 

रामेश्वरम में हुई थी अर्जुन और हनुमान की मुलाकात

 

कहा जाता है कि एक बार रामेश्वरम में अर्जुन और हनुमान जी की मुलाकात हुई थी. तब दोनों में राम रावण युद्ध को लेकर कुछ चर्चा होने लगी. इस पर अर्जुन ने कहा कि आपके प्रभु राम तो वीर योद्धा और धनुर्धर थे, तो उन्होंने लंका जाने के लिए पत्थरों की बजाय बाणों से ही सेतु का निर्माण क्यों नहीं कर दिया। इस पर हनुमान जी ने जवाब दिया कि बाणों का पुल वानर सेना के भार को सह नहीं सकता था. इस पर अर्जुन ने बड़े ही घमंड से कहा कि वे ऐसा पुल बना देते, जो टूटता ही नहीं.

 

हनुमान ने लगाई थी शर्त

 

अर्जुन को खुद पर काफी अभिमान था इसीलिए उन्होंने कहा कि वो सामने तालाब में बाणों का पुल तैयार करके दिखाते हैं, वह आपका भार सहन कर लेगा. उस समय हनुमान जी सामान्य रुप में ही मौजूद थे. हनुमान जी ने कहा कि अगर यह सेतु उनका वजन सहन कर लेगा, तो वे अग्नि में प्रवेश कर जाएंगे और यह टूट जाता है तो तुमको अग्नि में प्रवेश करना होगा. यह शर्त उन्होंने अर्जुन के साथ लगाई थी.जिसे अर्जुन ने मान लिया. 

 

हनुमान जी ने धारण किया विशाल रूप

 

तब हनुमान जी ने अपना विशाल रूप धारण कर जैसे ही पहला पैर पुल पर रखा. सेतु डगमगाने लगा. दूसरा पैर रखा तो वह चरमराने लगा और पुल की हालत देख अर्जुन ने शर्म से सिर झुका लिया. जब तीसरा पैर हनुमान जी ने रखा तो तालाब खून से लाल हो गया. यह देख हनुमान जी नीचे आए और अर्जुन को अग्नि प्रज्वलित करने को कहा। आग जलते ही हनुमान जी उसमें प्रवेश करने वाले ​थे, तभी भगवान श्रीकृष्ण प्रकट हुए और उन्हें ऐसा करने से रोक दिया. तब भगवान कृष्ण ने बताया कि आपके पहले ही पग के रखते यह सेतु टूट गया होता, अगर मैं कछुआ बनकर अपनी पीठ पर आपका भार नहीं उठाता. यह सुनकर हनुमान जी दुखी हुए और उन्होंने क्षमा मांगी. इस तरह अर्जुन का घमंड टूट गया.

 


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