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पहले किया भर्ती घोटाला अब खेल रहे प्रमोशन घोटाले का खेल, सिम्स प्रबंधन को नही किसी का भय कोंग्रेस सरकार में सिम्स प्रबंधन खुद को कर रहा सुरक्षित महसूस 16-Jun-2023
बिलासपुर-छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में वर्ष 2012-13 में सिम्स में भर्ती घोटाला उजागर हुआ था, तब स्थानीय प्रशासन से लेकर SIT जांच कराई गई। इसके बाद लोकायोग और हाईकोर्ट तक मामला पहुंचा। फिर भी स्वास्थ्य विभाग इस गड़बड़ी को लेकर कोई नतीजे पर नहीं पहुंच पाया। उस समय विपक्ष में रहते हुए वर्तमान स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव ने फर्जी नियुक्ति को लेकर सवाल उठाए थे। अब 8 साल बाद इन दागी कर्मचारियों को नियमित कर दिया गया। CIMS में उस समय तकरीबन 400 सौ कर्मचारियों की नियुक्ति में फर्जीवाड़ा उजागर हुआ था, जो कर्मचारी आज भी अपनी सेवाएं दे रहे हैं। भर्ती घोटाले की फाइल कांग्रेस सरकार में दब गई और सिम्स प्रशासन की मनमानी बढ़ गई जिसका नतीजा अब प्रमोशन घोटाले के रूप में सामने आ रहा है । यहां पर भी सिम्स प्रशासन के करीबी लोगों को प्रमोशन देने की सूची बनाई जा चुकी है लेकिन सवाल यह उठता है कि आखिरकार किस माप दंड के अनुसार उन कर्मचारियों को प्रमोशन दिया जा रहा है । या केवल रसूखदार व करीबियों को ही प्रमोशन देना सिम्स की प्राथमिकता है क्योंकि सिम्स प्रशासन को किसी का भय नही स्वास्थ्य सुविधाओं से लेकर कर्मचारियों तक मनमाना रवैया चल रहा है। जब प्रमोशन की खबर हमे लगी तो हमने जानना चाहा कि किस आधार पर प्रमोशन की प्रक्रिया सिम्स प्रबंधन अपना रही तो नीरज सेन्डे संयुक्त संचालक एंव अधीक्षक का जबाब सुनकर हम भी हैरान रह गए । उनका जबाब था कि वर्ष 2013-14 में भर्ती के समय लिखित परीक्षा ली गई थी उसी के आधार पर प्रमोशन प्रक्रिया की जा रही है । मामले को और समझने के लिए हमने कई वार्ड बॉय व वार्ड आया से चर्चा की लेकिन उन्होंने हमें बताया कि परीक्षा तो हुई थी लेकिन उसका परिणाम क्या था कितने अंक मिले या किसी भी प्रकार का कोई परीक्षाफल सिम्स द्वारा न तो हमे बताया गया न ही किसी पटल पर चस्पा किया गया हमे कुछ पता नही तो फिर किस परीक्षा के आधार पर प्रमोशन लिस्ट बन रही समझ से परे है। ऐसे हुआ था भर्ती घोटाला *ऐसे हुआ था भर्ती घोटाला और इसी तर्ज पर अब प्रमोशन घोटाले की तैयारी में सिम्स* CIMS में तृतीय व चतुर्थ श्रेणी के करीब 400 पदों पर भर्ती के लिए प्रबंधन ने वर्ष 2012-13 में विज्ञापन जारी किया था। भर्ती प्रक्रिया पूरी होने के बाद पता चला कि डॉक्टरों ने अपने ही घर में काम करने वाले प्राइवेट कर्मचारियों के साथ ही अनुभव व अयोग्य उम्मीदवारों की नियुक्ति कर दी। यह भी पता चला कि चयनित अभ्यर्थियों के पास योग्यतानुसार प्रमाणपत्र भी उपलब्ध नहीं थे। यही नहीं विज्ञापन की प्रक्रिया में भाग नहीं लेने वाले उम्मीदवारों का भी चयन कर लिया गया। दरअसल, यह मामला तब सामने आया, जब संविदा में काम कर रहे स्टॉफ को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। तब उन्होंने सूचना के अधिकार कानून के तहत भर्ती प्रक्रिया के दस्तावेज जुटाए। फर्जीवाड़ा सामने आने पर इस मामले की शिकायत हुई। उस समय तत्कालीन एडिशनल कलेक्टर नीलकंठ टेकाम के नेतृत्व में जांच कमेटी बनी। उनके जांच प्रतिवेदन में भी भर्ती में अनियमितता बरतने की बात सामने आई। लेकिन, उनकी जांच रिपोर्ट की फाइल की दबा दी गई। इधर, शिकायतकर्ताओं ने आला अधिकारियों के बाद लोकायोग से भी शिकायत की। लोकायोग जांच में भी गड़बड़ी की पुष्टि करते हुए शासन को SIT जांच कराने की अनुशंसा की गई। दूसरी तरफ चयनित उम्मीदवारों ने इस मामले को लेकर हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दी। इसके चलते मामले की जांच व फाइल भी दबी रह गई। हाईकोर्ट ने सभी पक्षों को सुनने के बाद मामले में शासन को नियमानुसार कार्रवाई करने के आदेश दिए। इसके बाद भी गड़बड़ी की फाइल दबी की दबी रह गई। इधर, सिम्स के स्टॉफ ने अपने नियमितीकरण की मांग को लेकर आंदोलन शुरू कर दिया। करीब दो माह तक उनका आंदोलन चला। उनके दबाव में आकर शासन ने डीन तृप्ति नागरिया को हटाकर डॉ. केके सहारे को डीन की जिम्मेदारी दी गई। उन्होंने आंदोलनरत स्टॉफ को नियमित करने का भरोसा दिलाया और आंदोलन समाप्त करा दिया। इसके साथ ही उनके नियमितीकरण की प्रक्रिया भी शुरू कर दी है। टीएस सिंहदेव ने नेता प्रतिपक्ष रहते उठाए सवाल जब CIMS में भर्ती घोटाला सामने आने पर तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष व वर्तमान स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव ने ट्विट किया था कि जब भर्ती प्रक्रिया की रिकार्ड ही गायब कर दी गई है तो अब जांच कराने का क्या मतलब, उन्होंने भर्ती में गड़बड़ी करने वालों पर सरकार का संरक्षण होने का भी आरोप लगाया था। लेकिन, जैसे ही कांग्रेस की सरकार बनी, तब इस मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया और SIT जांच की फाइल भी दबा दी गई। मन्नू मानिकपुरी संवाददाता बिलासपुर


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