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वर्ष 1699 में बैसाखी के पर्व के दिन खालसा पंथ की स्थापना की गई बैसाखी का खालसा पंथ से गहरा नाता 13-Apr-2024

आज (13 अप्रैल) पंजाब, हरियाणा समेत उत्तरी भारत में बैसाखी का पर्व धूमधाम के साथ मनाया जा रहा है। सिख समुदाय के लिए बैसाखी का दिन खास महत्व रखता है। दरअसल, इसी दिन से सिख नव वर्ष की शुरुआत होती है। बता दें कि अलग-अलग राज्यों में बैसाखी को अन्य नामों से भी जाना जाता है। असम में इसे 'बिहू', बंगाल में 'पोइला बैसाख' जैसे नामों से जाना जाता है। इसी तरह इस दिन बिहार में सत्तूआन का पर्व मनाया जाता है। बैसाखी को 'बसोआ' भी कहते हैं। तो आइए जानते हैं बैसाखी से जुड़ी अन्य जरूरी बातों के बारे में।

 

 

वर्ष 1699 में बैसाखी के पर्व के दिन खालसा पंथ की स्थापना की गई. खालसा पंथ की स्थापना के लिए गुरु गोबिंद सिंह जी ने आनंदपुर साहिब में सिखों को बैसाखी के दिन इक्ट्टठा होने के लिए कहा. इसके बाद उन्होंने स्वंय सेवक को आगे आने को कहा जो बलिदान देने के लिए तैयार थे. 5 लोग आगे आए जो अपना बलिदान देने के लिए तैयार थें.

 

बैसाखी का खालसा पंथ से गहरा नाता

कहते हैं कि बैसाखी के ही सिखों के दसवें और आखिरी गुरु गोबिंद सिंह जी ने 1699 को खालसा पंथ की स्थापना की थी। इस दिन गुरु गोबिंद सिंह ने सभी लोगों को मानवता का पाठ पढ़ाया और उच्च और निम्न जाति समुदायों के बीच के अंतर को खत्म करने का उपदेश दिया। सिख धर्म से जुड़ी मान्यताओं के मुताबिक, बैसाखी के मौके पर आनंदपुर साहिब की पवित्र भूमि पर हजारों की संख्या में संगत जुटी थी, जिसका नेतृत्व गुरु गोबिंद सिंह जी कर रहे थे। उन्होंने कहा कि धर्म और राष्ट्र की रक्षा के लिए मुझे पांच बंदों की जरूरत है, जो अपने बलिदान से धर्म की रक्षा करने में सक्षम हों। तब धर्म और राष्ट्र की रक्षा के लिए अपना शीश भेंट करने के लिए पांच प्यारे उठे। कहते हैं कि सबसे पहले इन्हें ही खालसा का रूप दिया गया था। 

सिख धर्म में पंज प्यारे का महत्व

सिखों के 10वें गुरु गोविंद सिंह जी के आह्वान पर धर्म के रक्षा के लिए जो 5 लोग अपना सिर कटवाने के लिए तैयार हुए थे उन्हें पंज प्यारे कहा जाता है। आनंदपुर साहिब में गुरु गोबिंद ने इन्हें 'पंज प्यारे' नाम दिया था। इन्हें पहले खालसा के रूप में पहचान मिली। गुरु गोबिंद सिंह जी ने सिख पुरुषों को अपने नाम के साथ सिंह और महिलाओं को अपने नाम के साथ कौर लगाने का आदेश दिया था। इसके अलावा उन्होंने खालसा को पंज ककार- केश, कंघा, कछहरा, कड़ा और कृपाण धारण करने के लिए कहा था। इसके अलावा यह भी कहते हैं कि बैसाखी के दिन ही महाराजा रणजीत सिंह को सिख साम्राज्य का प्रभार सौंपा गया था, जिन्होंने एकीकृत राज्य की स्थापना की थी।



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