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छोटे मीडिया संस्थानों के कर्मचारियों का दुख कौन बांटेगा ? 27-Apr-2020
कारोना वायरस की महामारी के कारण हुए लॉक डाउन एवं व्यापार बंद के बाद भी केन्द्र व प्रदेश सरकारों द्वारा बड़े इलेक्ट्रॉनिक मीडिया सहित बड़े प्रिंट मीडिया को सरकारी विज्ञापन देकर उन्हें सहारा दिया जा रहा है | परंतु छोटे इलेक्ट्रॉनिक मीडिया - वेब चैनल सहित प्रिंट मीडिया की तरफ केंद्र या प्रदेश की सरकारें ध्यान नहीं दे रही है किसी भी तरह की कोई सहायता इन्हें नहीं पहुंचाई गई हैं, महामारी से निपटने की आवश्यक वस्तुएं मास्क - सैनिटाइजर ग्लब्स जैसी छोटी-छोटी चीजें भी उपलब्ध नहीँ करवाई गईं हैं | छोटे मीडिया को उपेक्षित क्यों रखा गया जबकि तह तक जाकर अंदर की अच्छी और नेगेटिव खबरों को सामने लाने का काम इनके द्वारा भी किया जाता है | बिना मास्क सैनिटाइजर ग्लव्स के यह लोग रातदिन सरकार के कार्यों को जन जन तक पहुंचाते हैं| डॉक्टर, स्वास्थ्य कर्मचारी, सफाई कर्मियों, पुलिस सहित अधिकारियों की दिनचर्या - उनकी कार्यप्रणाली उनके नागरिकों के प्रति कर्तव्य और नागरिकों द्वारा किये जा रहे सराहनीय कार्यों - सेवा कार्यो के साथ-साथ सबको जागरूक करने की पहली कड़ी में छोटे वेब पोर्टल अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं इनके तमाम कर्मचारी जान जोखिम में डालकर अपने कर्तव्यों के प्रति ईमानदारी से लगे रहते हैं ,परंतु कहीं भी सुनने में नहीं आया कि सरकार ने एनजीओ ने या स्वयंसेवी संस्थाओं ने मीडिया कर्मचारियों को खोज कर उनका दुख दर्द बांटा हो उनकी परेशानियों को समझने की कोशिश की हो , उन्हें किसी तरह की कोई सहायता पहुंचाई हो , लाखों की संख्या में जिम्मेदारी पूर्वक कार्य कर रहे कैमरामैन - रिपोर्टर सहित बैक ऑफिस टीम की चिंता कौन करेगा ? - क्यों नहीं सरकारों द्वारा इन्हें पैकेज दिया जाता ? - क्यों नहीं सरकारों द्वारा इन संस्थानों को विज्ञापन देखकर सहयोग किया जाता ? यहां एक बात बताना जरूरी है कि छोटे मीडिया संस्थानों के इन कर्मचारियों में कार्य करने वाले रिपोर्टर - कैमरामैन - एडिटर सहित ऑफिस के सभी कर्मचारी मुश्किल से गुजारा कर रहे हैं - केंद्र एवं राज्य सरकारों को चाहिए कि वह इनके लिए भी आर्थिक पैकेज की व्यवस्था करें |


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