सिक्ख धर्म की रक्षा के लिए अंग अंग कटवाने वाले भाई मणी सिंह का शहादत दिवस

भाई मणी सिंह जी का आज शहीदी दिवस
सिक्ख धर्म की रक्षा के लिए अंग अंग कटवाने वाले भाई मणी सिंह का शहादत दिवस
भाई मणि सिंह जी सिख इतिहास में एक अत्यंत सम्मानित स्थान रखते हैं
भाई मणी सिंह
(07 अप्रैल 1644 -14 जून 1738)
भाई मणि सिंह जी का शहीदी दिवस 9 जुलाई को मनाया जाता है।
आप 18 वीं शताब्दी के प्रमुख सिक्ख विद्वान,लेखक तथा महान शहीद थे। जब इन्हें लाहौर के तत्कालीन मुगल शासक जकरिया खान द्वारा जान बचाने के लिए इस्लाम धर्म स्वीकार करने कहा तब इन्होंने बेधड़क मना कर दिया इस कारण जकरिया खान ने उनके शरीर के सभी जोड़ों (बंध बंध) को अलग अलग काट कर उनको मौत के घाट उतारने का आदेश दिया। जब जल्लाद ने उनकी कलाई से काटना शुरू किया, तो भाई मनी सिंह ने जल्लाद को उनकी सज़ा की याद दिलाते हुए कहा कि उन्हें हाथों की उंगलियों के जोड़ों से शुरू करना चाहिए।
भाई मणि सिंह के बचपन का नाम 'मणि राम' था। उनका जन्म अलीपुर उत्तरी में एक राजपूत परिवार मे हुआ था जो अब पाकिस्तान के मुजफ्फरगढ़ जिले में है। उनके पिता का नाम माई दास तथा माता का नाम मधरी बाई था।
भाई मनी सिंह पिता छठे गुरु साहिबान, गुरु हरगोबिंद साहिब की सेना के सेनापति महान शहीद राव बल्लू जी के पुत्र थे। शहीद मनी सिंह जी परमार का परिवार शक्तिशाली राजाओं के परिवार से आता है, वास्तव में वे भारत के महान राजपूत सम्राट विक्रमादित्य के 23वें वंशज थे।
वे गुरु गोबिन्द सिंह के बचपन के साथी थे। १६९९ में जब गुरु गोबिंद सिंघ जी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी तब इन्होंने भी 'सिख' धर्म निभाने की शपथ ली। इसके तुरंत बाद, गुरुजी ने इन्हें हरमंदिर साहिब की जिम्मेदारी संभालने के लिए अमृतसर भेज दिया, जो 1696 से बिना संरक्षक के था। उन्होंने सिख इतिहास के एक महत्वपूर्ण चरण में गुरुघर का नियंत्रण संभाला और उसे दिशा दी। वे .... बुंगा (शिक्षण संस्थान) के शिक्षक भी थे , जिसे बाद में "अमृतसरी टकसाल" के नाम से जाना जाने लगा, जो वर्तमान में सातो की गली में स्थित है।
इतिहास पढ़ने से पता चलता है कि भाई मणी सिंह के परिवार को गुरुघर से कितना प्यार और लगावा था। भाई मणी सिंह के 12 भाई हुए जिनमें 12 के 12 की शहीदी हुई, 9 पुत्र हुए 9 के 9 पुत्र शहीद। इन्हीं पुत्रों में से एक पुत्र थे भाई बचित्र सिंह जिन्होंने नागणी बरछे से हाथी का मुकाबला किया था। दूसरा पुत्र उदय सिंह जो केसरी चंद का सिर काट कर लाया था। 14 पौत्र भी शहीद, भाई मनी सिंह जी के 13 भतीजे शहीद और 9 चाचा शहीद जिन्होंने छठे पातशाह की पुत्री बीबी वीरो जी की शादी के समय जब फौजों ने हमला कर दिया तो लोहगढ़ के स्थान पर जिस सिक्ख ने शाही काजी का मुकाबला करके मौत के घाट उतारा वो कौन था, वे मनी सिंह जी के दादा जी थे। दादा के 5 भाई भी थे जिन्होंने ने भी शहीदी दी थी।
भाई मनी सिंह द्वारा लड़े गए युद्ध-
भंगानी की लड़ाई (1688)
नादौन की लड़ाई (1691)
आनंदपुर की लड़ाई (1699)
अमृतसर की लड़ाई (1709)
अठारहवीं शताब्दी के एक महान सिख व्यक्तित्व, भाई मणि सिंह जी सिख इतिहास में एक अत्यंत सम्मानित स्थान रखते हैं, क्योंकि ,एक महान विद्वान, एक समर्पित सिख लेखक और एक साहसी नेता, भाई मणि सिंह ने सिख धर्म और सिख राष्ट्र की गरिमा को बनाए रखने के लिए स्वेच्छा से अपने प्राण न्यौछावर कर दिए
आपजी की शहादत का स्वरूप , वर्तमान में सिक्खों की दैनिक अरदास (प्रार्थना) का एक महत्वपूर्ण अंग बन गया है।आपजी द्वारा श्री गुरु ग्रंथ साहिब को लिपिबद्ध किया गया एवं दशम ग्रंथ का संकलन किया जिसमें गुरु गोबिंद सिंह की बाणिया शामिल हैं।
ऐसे महान एवं गुरु के सच्चे सिक्ख भाई मणि सिंघ जी की शहादत को बारम बार प्रणाम