पर्यावरण विभाग राखड़ माफियाओं के कब्जे में, बेतरतीब ढंग से पाटे जा रहे हैं जलस्रोत

रायपुर/05 अगस्त 2025। छत्तीसगढ़ में राखड़ माफियाओ को सरकारी संरक्षण देने का आरोप लगाते हुए प्रदेश कांग्रेस कमेटी के वरिष्ठ प्रवक्ता सुरेंद्र वर्मा ने कहा है कि मोटे कमीशन के लालच में पर्यावरण विभाग के नियमों से बाहर जाकर अवैध गतिविधियों को संरक्षण दे रही है सरकार। ग्राम पंचायत को बिना विश्वास में लिए, बिना ग्रामसभा के प्रस्ताव के पावर प्लांट और राखड़ बांधों से जहां कहीं भी राखड़ डंप किए जा रहे हैं, जिससे आम जनता का जीना दुभर हो गया है। आम रास्ते से लेकर जल स्रोत और खेत खलिहान तक कहीं नहीं छोड़ा जा रहा है। पोखर और तालाबों की स्थिति भी बदहाल हो रही है, प्रदेश भर में कई बड़े भूजल स्रोत और नहर, राखड़ से पाट दिए गए हैं।
प्रदेश कांग्रेस कमेटी के वरिष्ठ प्रवक्ता सुरेंद्र वर्मा ने कहा है कि पूरे प्रदेश में सर्वाधिक समस्या कोरबा और रायगढ़ जिले में है जो पर्यावरण मंत्री ओपी चौधरी का गृह जिला भी है। कोरबा जिले में तो बालको, दर्री, जमनीपाली में रोड के किनारे जो छोटे-छोटे पोखर, डबरी, तालाब थे वे पूरी तरह से राख से भर दिए गए हैं। पूरे प्रदेश में राखड़ निपटान की समस्या विकराल रूप धारण कर चुकी है। राज्य सरकार द्वारा औद्योगिक हितों को प्राथमिकता देते हुए, बालको, अडानी पॉवर, मारुति पॉवर, एसीबी पॉवर जैसी कंपनियों को लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से प्राकृतिक जल स्रोतों को ‘लो लाइन’ के नाम पर पाटकर राखड़ भरने की अनुमति दी जा रही है। पहले केवल छोटे जलग्रहण क्षेत्रों को निशाना बनाया जाता था, किंतु अब बड़े और स्थायी जल स्रोत भी इस प्रक्रिया की चपेट में आ गए हैं। पर्यावरण विभाग को यह बताना चाहिए कि निजी कंपनियों को बिना पर्यावरण संरक्षण मंडल और संबंधित ग्रामसभा की अनुमति के बिना राखड़ से जल स्त्रोत पाटने की अनुमति आखिर किसने दी?
प्रदेश कांग्रेस कमेटी के वरिष्ठ प्रवक्ता सुरेंद्र वर्मा ने कहा है कि अनुपयोगी खाली खदानों को बांटने की एक तय प्रक्रिया है, जिसमें संबंधित ग्राम पंचायत, ग्राम सभा, राजस्व और पंचायत विभाग के साथ पर्यावरण विभाग की निगरानी आवश्यक है। कोरबा, रायगढ़ जिले में जिस प्रकार से राखड़ खपाने के नाम पर जल स्रोत बर्बाद किया जा रहे हैं, बेहद आपत्तिजनक है। चर्चा है कि पर्यावरण संरक्षण मंडल में बाहरी राज्यों की कंपनियों को इस काम में लगाने का षड्यंत्र रचा गया है। केवल कुछ ट्रांसपोर्टरों के मुनाफे के लिए किसानों के खेत, आम रास्ता और जनता के निस्तारी के तालाब और पोखर पाटना कहां तक उचित है?